myth that muslim took part in independence struggle
भारत देश में मुसलमानों और कम्युनिस्टों द्वारा एक सबसे बड़ा झूठ ये बोला जाता है कि मुसलमानों ने हिंदुओं के साथ आजादी की लड़ाई में कंधे से कंधा मिलाकर भाग लिया वास्तव में यही सबसे बड़ा झूठ है मुसलमानों ने हिंदुओं जैसे आजादी की लड़ाई में भाग लिया मुसलमानों ने मुख्यता सिर्फ दो अवसरों पर अंग्रेजों का विरोध किया पहला अट्ठारह सौ सत्तावन की लड़ाई में जब उनको लगा था कि अभी भी अंग्रेजों को भगाकर मुस्लिम राज कायम किया जा सकता है दूसरा उन्होंने अंग्रेजों का विरोध तब किया जब इनके खलीफा के खिलाफ अंग्रेजों ने युद्ध छेड दिया था तब इन्होंने सारी दुनिया में खलीफा राज के लिए अंग्रेजों का विरोध किया
आज हम मुसलमानों के आजादी की लड़ाई में भाग करने का तथ्यात्मक विश्लेषण करते हैं
जैसा की आप सबको पता है
आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों का विरोध करने के कारण हजारों लोगों को फांसी दी गई लेकिन इसमें सिर्फ 7 मुसलमानों को अंग्रेजों ने फांसी दी है जिनका नाम लेकर मुसलमान यह दावा करते हैं कि उन्होंने भी आजादी की लड़ाई में बराबर का भाग लिया आइए आज इन सब का विश्लेषण करते हैं
1 इलमुद्दीन
इस कट्टरपंथी ने राजपाल नामक एक हिंदू युवक की हत्या इसलिए कर दी थी कि उन्होंने प्रोफेट मोहम्मद का इसके अनुसार अपमान किया था अंग्रेजों ने इस को फांसी पर चढ़ा दिया मुसलमान इसका भी नाम फाँसी की लिस्ट में जोड़ कर क्रांतिकारी बता देते हैं
2 नसरुद्दीन मौजी और मौलाना मुसलियार अली
इन दोनों कट्टरपंथियों ने मुसलमानों के खलीफा से युद्ध छेड़ने के कारण अंग्रेजों का विरोध किया और केरल में मोपला आंदोलन चलाकर लगभग 10,000 हिंदुओं की हत्या कर दी अंग्रेजों ने इसको फांसी की सजा सुनाई लेकिन मुसलमान लोग इन दोनों कट्टरपंथियों को आजादी की लड़ाई का सिपाही बता कर हिंदू जनता को मूर्ख बनाते हैं
4 पीर अली खान इस मौलवी ने अट्ठारह सौ सत्तावन में अंग्रेजों का विरोध किया था अंग्रेजों ने इनको फांसी की सजा सुनाई थी
5 पीर औफ पोगैरो इन्होंने भी सिंध आंदोलन किया था कि वास्तव में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे जिसको अंग्रेजों ने फांसी की सजा दी थी
6 शेर अली अफरीदी यह अट्ठारह सौ सत्तावन में अंग्रेजो की तरफ से लड़ा था लेकिन इसने अपने एक रिश्तेदार की हत्या कर दी तब अंग्रेजों ने इस को फांसी की सजा सुनाई और इसमें दो अंग्रेज अफसरों को गोली मार दी लेकिन वास्तविकता ना बता कर मुसलमान इसको भी आजादी की लड़ाई के सिपाही बता देते हैं
7 अशफाक उल्ला खान यह वास्तविक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका अंग्रेजों ने इनको फांसी दी इन्होंने भी वीर सावरकर जाए रणनीतिक रूप से अंग्रेजों से दो बार माफी मांगी थी
इस तरह से हम देखते हैं कि जहां हजारों हिंदुओं को आजादी की लड़ाई में फांसी हुई उस में मुसलमानों की संख्या सिर्फ 7 है और वास्तविक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तो उसमें भी सिर्फ दो हैं वास्तविकता तो यह है कि मुसलमानों ने 1906 में ही अंग्रेजों से सांठगांठ करके अपने लिए अलग से अलग निर्वाचन मांग लिया था जब आर एस एस का गठन ही नहीं हुआ था
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