shri ram parashuram samvad
बाल्मीकि रामायण में श्री परशुराम और श्री राम का संवाद कुछ अलग है जो कि तुलसी रामायण से थोड़ा अलग है यह बालकांड के 74 75 76 77 सर्ग में वर्णन है जिसका मेरे द्वारा श्लोक और सर्ग सहित प्रमाण देकर वर्णन किया जाएगा
सभी श्लोको के स्क्रीन शॉट लगाए जा रहे है इसलिए आप सब प्रमाण सहित अगर सभ्य भाषा मे कुछ कहना चाहे तो जरूर कहे
बाल्मीकि रामायण में श्री परशुराम जी धनुष भंग के समय नहीं आते बल्कि सीता विवाह हो जाने के बाद जब श्री राम अयोध्या की तरफ प्रस्थान करते हैं तब रास्ते में आते हैं
सर्ग 74 के 18 वे श्लोक में वर्णन है कि महाराज दशरथ ने भयंकर रूप धारण किए जटा जूट धारी भृगुवंशी जमदग्नि के पुत्र और राजाओं के मान मर्दन करने वाले परशुराम को देखा
श्लोक 20 में वर्णन है कि वो कंधे पर फरसा रखे हुए थे और बिजली की तरह चमचमाता धनुष बाण लिए हुए ऐसे जान पड़ते थे कि मानो त्रिपुरासुर को मारने के लिए भगवान शिव जी आए हो इस श्लोक को भी ध्यान से पढ़िए जैसे रानी लक्ष्मीबाई को कभी बोला जाता है कि वह चंडी का रूप थी इसका मतलब यह नहीं होता है कि वह साक्षात दुर्गा का अवतार थी बल्कि यह अलंकार है इस इस श्लोक में भी यही साफ साफ बोला गया है मानो का शब्द इस्तेमाल किया गया है जोकि अलंकार के लिए उपयोग होता है श्लोक में ये बताया गया है कि वह देखने से इस तरह से लग रहे थे कि जैसे भगवान शंकर जी त्रिपुरासुर असुर को मारने आये हो जो कि उनके वीर वेशभूषा और तेज से लग रहा था
श्लोक 22 में ऋषियो की चर्चा का वर्णन है कि पिता के मारे जाने के क्रोध में जिस तरीके से क्षत्रियों का नाश किया था उसी तरीके से कहीं परशुराम जी दुबारा क्षत्रियों को मारने के लिए तो नहीं आए हैं यह वशिष्ठ और ऋषि यों के बीच में चर्चा हुई थी इस श्लोक में यही वर्णन है वशिष्ट जी और दूसरे ऋषियोमे चर्चा होती है कि क्षत्रियों का संघार करने के बाद तो श्री परशुराम का क्रोध शांत हो गया था तो फिर यह दोबारा क्षत्रियों को मारने के लिए वीर भेष क्यों धारण किये हुए हैं
श्लोक 24 में वर्णन है कि ऋषि लोग श्री परशुराम के समीप आए और उनका राम-राम कहकर बंदना करने लगे
इसी के साथ यह सर्ग समाप्त होता है और 75 वा सर्ग परम्भ होता है
ऋषियो की वंदना स्वीकार करने के बाद पहले श्लोक में श्री परसुराम जी द्वारा श्री राम से कहा जाता है कि की है राम तुम्हारा पराक्रम अद्भुत है ऐसा मैंने सुना है तुम्हारे द्वारा धनुष भंग करने की भी घटना मैंने सुनी है उस धनुष का तोड़ना असंभव है और इस घटना को सुनकर हम दूसरा धनुष लेकर आए हैं (श्लोक 2)
श्लोक 4 में वर्णन है कि श्री परशुराम द्वारा श्री राम को यह कहा जाता है कि इस धनुष पर बाण चढ़ाइए चढ़ाने के बाद हम आपसे युद्ध करेंगे
यह सुनकर राजा दशरथ डर जाते हैं और उदास हो जाते हैं और वह परशुराम से हाथ जोड़कर विनती करने लगते हैं( श्लोक 5)
दशरथ जी द्वारा कहा जाता है कि आपका जो क्षत्रियो पर क्रोध था वह तो शांत हो चुका है आप यशस्वी ब्राह्मण हैं साथ में उनके द्वारा विनती की जाती है कि ब्राह्मणों को क्रोध शोभा नहीं देता है इसलिए मेरे पुत्र को अभय दान दीजिए(श्लोक 6)
इन सभी श्लोको में भी यह उल्लेखनीय बात है की दशरथ और ऋषि यों द्वारा परशुराम जी को ब्राह्मण कहा जाता है भगवान नही
आगे महाराज दशरथ द्वारा कहा जाता है कि आप तो वेद पाठ करते हो और आपने इंद्र के समान प्रतिज्ञा करके हथियार का त्याग कर दिया है( श्लोक 7)
और आपने सारी पृथ्वी को कश्यप को दान दे दिया है और आप तपस्या करने महेंद्र पर्वत पर चले गए हैं
ऐसा मुझे प्रतीत हो रहा है कि आप मेरा सब कुछ नष्ट करने के लिए दोबारा आए हैं लेकिन अगर आपने हमारे राम को मार दिया तो हम कोई भी जीवित नहीं बचेंगे प्राण त्याग देगे( श्लोक 9)
श्री परशुराम जी ने राजा दशरथ की बात की अवहेलना करके श्री रामचंद्र जी से कहा( श्लोक९)
अगले कई श्लोकों में परशुराम जी ने शिव धनुष और अपने हाथ में रखे हुए धनुष का वर्णन किया है यहां तक कि बताया है कि जो उनके पास धनुष है उसको धारण करके भगवान विष्णु ने भगवान शिव को हरा दिया था और अब यह धनुष उनके पास है इसके बाद ( परशुराम जी ने अगले श्लोक में (श्लोक 24) मैं यह बताया है कि सहस्त्रबाहु ने मेरे पिता को मार डाला तो मैंने उसका वध कर दिया
अगला 25 श्लोक में परशुराम जी द्वारा वर्णन किया गया है कि जैसे जैसे छत्रिय उत्पन्न होते गए वैसे वैसे मैंने उनको सबको क्रोध बश मार दिया (श्लोक 25)
इस श्लोक को ध्यान से और पूरा पढ़ने पर ये दिखता है कि श्री परशुराम जी द्वारा यह कहा गया है क्रोध में मैंने जैसे-जैसे क्षत्रिय उत्पन्न होते गए उनका बध किया है तुलसीदास जी ने भी रामचरितमानस म लिखा हुआ है कि श्री परशुराम जी कहते है कि
बाल ब्रह्मचारी अति कोही
विश्व विदित क्षत्रिय कुल द्रोही
तुलसीदास जी की रामचरितमानस में भी श्री परशुराम द्वारा अपने को क्षत्रिय कुल द्रोही बताया जाता है इसमे कहि भी आततायी क्षत्रिय का जिक्र नही मिलता
तुलसीदास जी की रामायण में अगला दोहा है
मातु पितहि जनि सोच बस करेसी महिष किशोर
गर्भन के अर्भक दलन परस मोर अति घोर
अर्थात है राजा के पुत्र अपने माता-पिता को सोचकर चुप रह जाओ क्योंकि मेरे फरसे के कारण गर्भवती औरतों के गर्भ तक गिर जाते हैं
आगे वाल्मीकि रामायण में श्री परशुराम जी द्वारा श्री राम को कहा जाता है कि आप इस पर बाड़ चढ़ाए उसके बाद मुझ से युद्ध करिए( श्लोक 29) अब ये सर्ग समाप्त होता है
76 सर्ग आरंभ
अगले श्लोक में वर्णन है कि श्री राम अपने पिताजी का आदर करके परशुराम जी से बोले( श्लोक1)
कि परशुराम जी आपने जो अपने बारे में बताया है वह सब मुझे पता है( श्लोक2)
लेकिन आप जो यह कह रहे हैं कि हम पराक्रम हीन है श्री हीन और वीर्य हीन है अब आप मेरा पराक्रम देखिए( श्लोक 3)
इतना कहकर श्री राम जी ने परशुराम से क्रोध में धनुष बाण ले लिया( श्लोक4)
और धनुष पर बाण चढ़ाकर क्रोधित होकर परशुराम जी से बोले
(श्लोक 5)
हे परशुराम जी
एक तो आप ब्राह्मण हैं दूसरे आप विश्वामित्र के रिश्तेदार हैं इसलिए इस बार को छोड़कर मैं आपके प्राण लेना नहीं चाहता हूं(श्लोक6)
आगे श्री राम जी द्वारा कहा जाता है कि यह बाड़ अमोघ है और अब धनुष से लौट नहीं सकता इसलिए या तो मैं आपकी तपस्या के फल को नष्ट कर दूँगा या आपके पास जो मन की गति से जाने आने की शक्ति है वह नष्ट कर लूंगा दोनो में से कोई एक विकल्प आप चुन लीजिए (श्लोक 7 और 8)
श्री राम के धनुष पर बाण चढ़ाने से ब्रह्मा जी और सारे देवता जय-जयकार करने लगे( श्लोक10)
श्री राम के तेज के आगे परशुराम जी तेज हीन हो गए जड़ के समान वीर्यहीन हो गए तब वो कमलनयन भगवान श्री रामचंद्र जी से धीरे-धीरे बोलने लगे
श्री राम जी मुझे मन की गति से चलने की आवश्यकता है इसलिए मेरी मन की गति से चलने का तेज ना खत्म करिए बल्कि मेरे द्वारा जो पुण्य अर्जित किए गए हैं उसका नाश कर दीजिए( श्लोक 15 16)
श्री परसुराम जी ने कहा कि आपके इस धनुष पर बाण चढ़ाने से मुझे पता लग गया है कि आप ही मधु दैत्य को मारने वाले हैं और आप खुद भगवान विष्णु के अवतार है ( श्लोक 17)
ये सभी देवता आपके सिर्फ दर्शन करने के लिए आए हैं(श्लोक 18)
हे राघव आप तीनो लोको के स्वामी हैं आप से हार जाने पर मुझे कोई लज्जा नहीं है(श्लोक 19)
हे राम अब आप इस बाड़ को छोड़िए बाण के छूटते ही मैं महेंद्र पर्वत पर चला जाऊंगा
भगवान राम के बाण छोड़ते ही सभी दिशाएं प्रकाशमान हो गई सभी देवता भगवान श्रीराम की प्रशंसा करने लगे( श्लोक23)
जमदग्नि के पुत्र श्री परशुराम दशरथ नंदन श्री रामचंद्र जी की प्रशंसा करके और उनकी परिक्रमा करके अपने स्थान को चले गए (श्लोक) 24
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