bhishm parshuram yudha

 परशुराम और भीष्म का युद्ध महाभारत के उद्योग पर में 178 अध्याय से 186 अध्याय में वर्णन है


179 अध्याय के श्लोक नम्बर 18 में भीष्म जी बताते हैं कि बहुत दिन तक युद्ध चलता रहा परशुराम जी ने उन पर बहुत सारे  बाण चलाएं जिस से भीष्म के सारथी और घोड़े गिर गए लेकिन फिर भी वह पहनकर खड़े रहे

फिर श्लोक नम्वर 27 28 29 30 भीष्म द्वारा बताया जाता है पुराने परशुराम तक बहुत सारे बाण मारे देश के कारण उनका पूरा शरीर रक्त से भर गया

फिल्म बोलते हैं कि मुझे एक ब्राह्मण  पर  बाण चलाने का दुख हुआ और उन्होंने बाल नहीं चलाया और उस दिन का युद्ध समाप्त हुआ

180 अध्याय के श्लोक नम्बर 13 और 14 में लिखा है कि परशुराम जी ने भयंकर बाढ़ चला कर भी भीष्म को मूर्छित कर दिया 

और उनका शहर थी उनको युद्ध क्षेत्र से बाहर ले गया जैसे ही उनको होश आया वह दोबारा फिर युद्ध क्षेत्र में तुरंत आ गए

इस लोक नंबर 19 20 21 में लिखा हुआ है भीष्म ने  बहुत सारे बान परशुराम जी पर चलाए लेकिन उन्हें उन सारे बानो उन्होंने  खंडित कर दिया

फिर आगे के श्लोक 23 24 में लिखा है कि भीष्म ने भयंकर बाण चलाया

 जिसके कारण परसराम जी मूर्छित होकर भूमि पर गिर पड़े 26 27 में  वर्णन है कि

परशुराम जी के मुछित होकर  गिरने के बाद बहुत सारे तपस्वी तुरंत आ गए और परशुराम जी पर जल का छिड़काव किया जिसके कारण फिर उनको होश आया

28 में लिखा है कि परशुराम जी ने क्रोध में बाण चलाया जिससे भीष्म के घोड़े मर गए

फिर दोनों तरफ से भयंकर बाणों की वर्षा होने लगी

उसके बाद फिर सूर्यास्त हो गया

आगे 181 अध्याय में है

1 से लेकर 10  श्लोक में वर्णन है कि दोनों ओर से भयंकर बाणों की वर्षा हुई परशुराम जी ने एक भयंकर तेज वाली गदा का प्रहार किया जिसके कारण सभी दिशाओं में कोलाहल मच गया लेकिन भीष्मने उसका प्रभाव भी अपने दिव्यास्त्र से खत्म कर दिया और फिर सूर्यास्त हो गया

182 अद्याय में आगे लिखा हुआ है कि अगले दिन परशुराम जी भयंकर शस्त्र मारकर भीष्म के सारथी को वध कर दिया

और भयंकर वाण की वर्षा की जिससे भीष्म जमीन पर गिर पड़े  जिससे प्रसन्न होकर परशुराम जी ने भीषण गर्जना की और भीष्म के साथ जो कौरव खड़े थे वह सब दुखी हो गए (श्लोक 7 से 10)

लेकिन उसी समय भीष्म ने सूर्य के समान तेजस्वी 8 यमुनो को ब्राह्मण के भेष में अपने पास देखा जिन्होंने उनको घेर लिया और अपनी मजबूत भुजाओं पर उठाकर युद्ध क्षेत्र के बाहर कर दिया श्लोक 12

उन्होंने उनको जमीन पर नहीं गिरने दिया और अंतरिक्ष क्षेत्र में ले गए जल के छींटे डालकर और ब्राह्मण रूपि यामुनो ने भीष्म की मूर्छा हटाई 

और फिर उन्होंने वहीं पर अपनी माता गंगा जी का दर्शन किया भीष्म जी ने माता जी को प्रणाम किया और फिर रथ पर बैठ गए

पुणे भीष्म पितामह पर बैठकर युद्ध क्षेत्र पर आ गए और उन्होंने परशुराम पर भयंकर बाढ़ की वर्षा की जिसे परसराम जी जमीन पर मूर्छित होकर गिर पड़े श्लोक 19 20

उनके मूर्छित होते हैं तेज हवाएं चलने लगी सूर्य ढक गया पृथ्वी कांपने लगी

लेकिन बगुले और कौवे खुशी से भरकर युद्ध क्षेत्र में आ गए श्लोक 22 23

फिर परशुराम जी मूर्छा छोड़कर तुरंत उठ खड़े हुए और क्रोध में भरकर भयंकर अस्त्र-शस्त्र का संघार करने के लिए मुझ पर तैयार हुए लेकिन उसी समय कुछ उदार मुनियों ने उनको मेरे ऊपर बाण छोड़ने से रोक दिया

फिर सायं काल हो गया

183 अध्याय

उसी रात भीष्म ने अपने मन में सोचा कि मेरा ब्राह्मण परशुराम से युद्ध हो रहा है जिसमें मेरा विजय पाना मुश्किल हो रहा है अगर मेरा जीतना संभव है तो आज की रात में ही देवता प्रसन्न होकर मुझे दर्शन दे श्लोक 4 5 यही सोचते-सोचते भीष्म निद्रा में आकर रथ से नीचे गिर गए तो यमन रूपी तेजस्वी ब्राह्मणों ने उनको अपने हाथों में थाम लिया और लोगों ने कहा कि हम तुम्हारी रक्षा करेंगे क्योंकि तुम हमारे शरीर हो परशुराम तुम्हें कभी भी युद्ध में जीत नहीं सकते श्लोक  7 8 और उन लोगों ने भविष्यवाणी की कि रण में तुम्हारी ही विजय होगी जब तुम इस प्यारे अस्त्र को जान जाओगे (श्लोक 10 और 11) क्योंकि इसके पहले बसु रूप में तुम इन अस्त्रों को जानते थे इस अस्त्र  का नाम प्रसवाप है जिसका देवता प्रजापति है जो विश्वकर्मा ने बनाया है और इसको परशुराम नहीं जानते हैं इस  शस्त्र का स्मरण करना यह अपने आप धनुष पर आ जाएगा

इससे परशुराम की हार  होगी  लेकिन उनकी मृत्यु इस  से नहीं होगी  क्योकि वो अमर है इसलिए  राजन तुम्हें ब्राह्मण हत्या का कोई पतिक पाप नहीं लगेगा

प्रातः काल रथ में बैठकर यही करना और यह सब कह कर वह अंतर्ध्यान हो गए श्लोक 12 से 18

प्रातः काल हुई और भीष्म अपने स्वप्न को याद करके बहुत प्रसन्न हुए इसके बाद युद्ध शुरू हो गया

184  अध्याय

परशुराम जी भीष्म पितामह पर बानो की वर्षा करने लगे भीष्म पितामह परशुराम पर बानो की बरसात करने

 लगे परशुराम के प्रहार से भीष्म के शरीर से रुधिर की वर्षा होने लगी भीष्म पितामह ने भी बाण मारकर परशुराम जी के घाव बना दिया जिससे क्रोधित होकर परशुराम जी ने बाण  मार कर भीष्म को मूर्छित कर जमीन पर गिरा दिया थोड़ी देर बाद मूर्छा टूटने पर मैं उठा

फिर मैंने क्रोधित होक्रर भयंकर बाण छोड़ा जो परशुराम की छाती में लगा और वो कांपने लगे

फिर परशुराम जी ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा और भीष्म ने भी ब्रह्मास्ट छोड़ा 

श्लोक 16 जिसके कारण पूरी दुनिया में कोलाहल मच गया धरटी कांपने लगी

देवता  विह्वल हो गए  उसी समय मैंने तुरंत परशुराम जी को हराने के लिए  प्रसवाप अस्त्र को प्रकट होने की इच्छा प्रकट की श्लोक 21 अध्याय स्माप्तत

185 अध्याय

भीष्म कहते हैं मेरे जैसे इस अस्त्र को हाथ में लिया वैसे भी आकाश में कोलाहल होने लगा देवताओं ने मुझसे कहा कि तुम परशुराम के ऊपर इस अस्त्र का प्रयोग ना करो नारद जी ने कहा देवता गण और हम तुम्हें आज्ञा देते हैं कि इस अस्त्र का प्रयोग ना करो परसराम जी ब्राह्मण हैं और तुम्हारे गुरु है श्लोक 2 3  4 उसी समय भीष्म ने देखा कि वह आठो तेजस्वी लोग आकाश में खड़े हैं और मुस्करा कर धीरे से बोले कि  जैसा नारद जी बोल रहे हैं वैसा करो फिर मैंने उस तेजस्वी अस्त्र को नीचे उतार लिया यह देख कर परसराम जी प्रसन्न होकर बोले कि भीष्म ने मेरा पराजय कर दिया है श्लोक 8 इतने  में परशुराम ने अपने पिता जमदग्नि और पितामह को देखा परसराम को समझा कर कहने लगे

के छतरी के साथ युद्ध नही करना चाहिए युद्ध करना क्षत्रियों का धर्म है ब्राह्मणों का धर्म वेद पाठ और व्रत पूजा है श्लोक 9 से 13 भीष्म के साथ अब युद्ध करना तुम्हारा अपमान होगा इसलिए तुम रणभूमि छोड़कर चले जाओ श्लोक 14 उन्होंने यह भी कहा कि परसराम से युद्ध करना तुम्हारा ठीक नहीं है वह तुम्हारे गुरु  हैं इस लिए  युद्ध पर रोक दो श्लोक 15 से 18 

फिर परशुराम से  कहा कि भीष्म सभी  बसु  में  सबसे बड़े है उनसे कैसे जीतोगे श्लोक 19

तब परशुराम ने कहा कि मैं युद्ध से किसी भी कीमत पर पीछे नहीं हटूंगा अगर भीष्म को लौटना है तो वह लौट जाएं

नारद जी ने मुझसे कहा कि भीष्म आप ही युद्ध क्षेत्र में लड़ना बंद कर दो परसराम जी का सम्मान करो

परंतु मैंने भी क्षत्रिय धर्म का निश्चित करके रणभूमि छोड़ने से  मना  कर दिया

इसके बाद सभी देवता नारद मुनि और और परशुराम के पिता जी इकट्ठा होकर परसराम जी के पास करें और उनसे बोला कि तुम ब्राह्मण हो युद्ध करना बंद करो भीष्म को मारने की इच्छा छोड़ दो और वह सभी परशुराम को घेर कर खड़े हो गए और परशुराम जी के पितरों ने उनसे शस्त्र रखवा दिया श्लोक 31 से 33 उसी समय फिर मैंने उन ब्राह्मण ररूपी  तेजस्वी 8 दिव्य  पुरुषों को देखा उन्होंने मुझसे कहा कि तुम परशुराम के पास जाओ जब मैंने देखा कि संबंधियों के कहने से परशुराम जी युद्ध करने से रुक गए थे तो मैंने भी उनका कहना मान लिया अत्यंत ही घायल हुए परशुराम जी के पास जाकर वह प्रणाम किया तब महा तपस्वी परशुराम जी ने मुस्कुरा कर कहा तेरे छतरी इस संसार में दूसरा कोई नहीं है तुमने मुझे युद्ध में इस तरह से प्रश्न कर लिया है कि अब तुम जाओ श्लोक 33 से 37 उसके पश्चात परशुराम जी उस कन्या को बुलाकर दीन स्वर में कहने लगे अध्याय समाप्त

186 आद्याय

हे पुत्री मैंने तुम्हारे सामने ही भीष्म से इतना भयंकर युद्ध किया अब मैं क्या करूं तुम भीष्म की ही शरण में जाओ जिसने मेरे ऊपर बड़े-बड़े शस्त्र प्रहार करके मुझे हरा दिया है

श्लोक  परंतु अंबा नेभीष्म के पास जाने से इनकार कर दिया और बबोली  कि मैं भीशन  तप करके भीष्म का संघार करूंगी

Comments

Popular posts from this blog

rajput victory on mugal राजपूतो की मुस्लिमो पर जीत 1

a dalit lady Shrimati Dakshayani Velayudan ( who opposed ambedkars separate electorate demand and termed is antinational like muslim leage

reservation is not right any govt is free to not give sc st obc or any type of reservation